न्यायालय यह निर्णय लेने लगेंगे तो जिला और तहसील की मांग पर भी न्यायालय पहुंच जाएंगे
नैनीताल हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पत्र ज्वलंत मुद्दे को दी हवा, कहा इस तरह के निर्णय संसद या विधानमंडल ही करते आए हैं
Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड हाई कोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट किए जाने को लेकर चल रहे घमासान के बीच पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी की चिट्ठी ने सियासी तापमान भी बढ़ा दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे पत्र में भगत दा ने कहा वह कानून के विद्यार्थी नहीं हैं। किंतु, लंबे समय तक संसद व विधान मंडल के सदस्य रहने के कारण यह कहना है कि कौन सी संस्था व विभाग कहां रहेगा, इसका निर्णय संसद या विधान मंडल ही करते आए हैं। न्यायालय इस संबंध में निर्णय लेने लगेंगे तो पीआईएलकर्ता किसी भी विभाग, जिला या तहसील की मांग को लेकर न्यायालय पहुंच जाएंगे। साथ ही इससे संविधान के माध्यम से केंद्र या प्रदेश सरकारों को मिले अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की भी आशंका है।
यह पत्र पूर्व राज्यपाल कोश्यारी ने 13 मई 2024 को लिखा है। हालांकि, हाई कोर्ट शिफ्टिंग के मामले ने 08 मई 2024 को तभी तूल पकड़ लिया था, जब चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने हाई कोर्ट की एक बेंच ऋषिकेश के आईडीपीएल की भूमि पर शिफ्ट करने को लेकर मौखिक निर्देश जारी किए थे। ताकि संबंधित स्थल का परीक्षण कर रिपोर्ट दी जा सके। इसकी जानकारी मिलते ही हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले तमाम अधिवक्ता भड़क उठे थे। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के तमाम अधिवक्ता अध्यक्ष डीसीएस रावत के नेतृत्व में चीफ जस्टिस की कोर्ट में भी पहुंचे। साथ ही आपात बैठक कर कहा कि हाई कोर्ट एक ही स्थान पर होना चाहिए।
हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर दूसरे पहलू का नजरिया एकदम भिन्न दिखा। देहरादून बार एसोसिएशन के बैनर तले गढ़वाल मंडल के तमाम बार पदाधिकारी और अधिवक्ता न सिर्फ एकजुट हुए, बल्कि कोर्ट के आदेश का स्वागत भी किया गया। दूसरी तरफ शुक्रवार 10 मई 2024 को जब कोर्ट का विस्तृत आदेश आया तो शिफ्टिंग को लेक्ट तस्वीर और साफ हो गई। कोर्ट ने हल्द्वानी के गौलापार में 26 हेक्टेयर भूमि पर पेड़ों की अधिकता को देखते हुए यहां हाई कोर्ट को शिफ्ट करने की कवायद को खारिज कर दिया।
इसके अलावा कोर्ट ने नए स्थान के चयन के लिए मुख्य सचिव को 06 जून 2024 तक रिपोर्ट देने, हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने और जनमत संग्रह जैसे विकल्प भी खोल दिए। अधिवक्ताओं और नागरिकों का मत जानने के लिए हाई कोर्ट की वेबसाइट पर पोर्टल का लिंक भी डाल दिया गया है। दूसरी तरफ कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में अधिवक्ताओं के संगठन अपने-अपने हिसाब तर्क-वितर्क कर रहे हैं और बैठकों का दौर जारी है।
इसी बीच 13 मई 2024 को लिखा गया भगत सिंह कोश्यारी का पत्र बाहर आया तो इस ज्वलंत मुद्दे को और हवा मिल गई। भगत दा की ओर से मुख्यमंत्री धामी को संबोधित पत्र में तमाम बातों का उल्लेख किया गया है। उनके पत्र के मुताबिक गौलापार की भूमि को हाईकोर्ट की फुल बेंच ने स्वीकृति दी थी। ऐसे में अन्यत्र वैकल्पिक स्थान ढूंढने से क्षेत्र में असंतोष फैलने की आशंका भी कोश्यारी ने अपने पत्र में जताई है। पत्र में इस बात का उल्लेख भी है कि अधिकतर पेड़ों की मोटाई 4 से 6 इंच ही है।
इसके अलावा भगत दा ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री को गूढ़ सलाह भी दी है। उन्होंने कहा कि वह विनम्रता के साथ कहते हैं कि वह न्यायालय का सम्मान करते हैं और अनुरोध करते हैं कि उच्च न्यायालय के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रथा से बचा जाना चाहिए। इससे भविष्य में इसका दुरुपयोग हो सकता है। साथ ही कहा कि केंद्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से प्रकरण का हल निकाला जाना चाहिए।