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वीडियो: कॉपी-किताबों की दुकानों पर प्रशासन की ताबड़तोड़ छापेमारी, बिल बुक कब्जे में, डीएम ने दर्ज करवाई एफआईआर

अभिभावकों को लूटने वाले शिक्षा माफिया पर सीएम धामी सख्त, डीएम ने दिखाया रौद्र रूप, मजबूर अभिभावकों को लूटने के साथ ही धड़ल्ले से कर रहे जीएसटी चोरी

Amit Bhatt, Dehradun: स्कूलों के रिजल्ट आते ही शिक्षा माफिया की चांदी काटने का मौसम शुरू हो जाता है। सांठ-गांठ कर स्कूल प्रबंधन, बुक डिपो और यूनिफॉर्म संचालक मजबूर अभिभावकों की दोनों हाथों से जेब कतरने का क्रम शुरू देते हैं। लेकिन, शिक्षा माफिया की करतूत की भनक लगते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नाराजगी दिखाई तो जिलाधिकारी (डीएम) सविन बंसल भी रौद्र रूप में आ गए। उन्होंने प्रशासन की अलग-अलग टीमें गठित की और शनिवार शाम को शहर के कई बुक डिपो पर रेड कर दी। जो सच्चाई सामने आई, वह चौंकाने वाली है। बुक डिपो संचालक बिना बिल के स्टेशनरी बेच रहे हैं और कॉपी-किताबों के बंडल में जबरन अनचाही वस्तुएं/सामग्री भी ठूंस रहे हैं। साथ ही टैक्स के रूप में मिलने वाले जीएसटी को भी बुक डिपो संचालक अपनी जेब में ठूंस रहे हैं। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए बुक डिपो संचालकों की बिल बुक कब्जे में ली गई हैं और जिलाधिकारी ने तत्काल एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश भी जारी करवा दिए।

जिलाधिकारी सविन बंसल ने शनिवार को सिटी मजिस्ट्रेट के साथ ही 03 उपजिलाधिकारियों को शामिल करते हुए छापेमारी के लिए चार टीम गठित की। प्रशासन की टीम ने सुभाष रोड स्थित ब्रदर पुस्तक भंडार, डिस्पेंसरी रोड स्थित नेशनल बुक डिपो और राजपुर रोड स्थित यूनिवर्सल बुक डिपो पर एक साथ छापा मारा। इस दौरान अधिकारियों ने बुक डिपो की बिल बुक की जांच की। पता चला कि बिना बिल के ही अभिभावकों को स्टेशनरी की बिक्री की जा रही है। जो अभिभावक बिल की मांग कर रहे हैं, उन्हें पक्के बिल की जगह सादे पर्चे पर दाम लिखकर दिया जा रहा है। जो अभिभावक सिर्फ किताबों की मांग कर रहे हैं, उन्हें जबरन कापी और जिल्द के बंडल थमाए जा रहे हैं। इसके अलावा स्टेशनरी के बंडल में बिना स्वीकृति के डिक्शनरी भी ठूंसी जा रही है। सभी जगह अभिभावकों के साथ जमकर मनमानी पाई गई।

बुक डिपो से कब्जे में ली बिल बुक, किताबों पर बार कोड भी नहीं
उपजिलाधिकारी कुमकुम जोशी ने राजपुर रोड स्थित यूनिवर्सल बुक डिपो की जांच की। उन्होंने पाया कि अभिभावकों को बढ़े हुए दाम पर कापी किताबें बेची जा रही हैं। साथ ही बिना बार कोडिंग के भी बिक्री पाई गई। सन्देह गहराने पर उपजिलाधिकारी ने बुक डिपो की सभी बिल बुक को कब्जे में ले लिया है। इसके अलावा बिना बार कोडिंग की किताबों को भी जब्त किया गया। इसी तरह सुभाष रोड के ब्रदर बुक डिपो में भी जीएसटी चोरी की बात सामने आई है। जिस पर टीम में शामिल सहायक राज्य कर आयुक्त अवनीश पांडे ने जांच शुरू कर दी है। बताया गया कि मौके पर बुक डिपो संचालकों बिलों को लेकर कोई जानकारी नहीं दे पाई। जिसके क्रम में आगे की कार्रवाई की जाएगी।

जमकर की जा रही जीएसटी की चोरी, कुल टर्नओवर पर होगी वसूली
कापी किताबें की दुकानों में बिना बिल के बिक्री को देखते हुए जीएसटी की टीम को भी प्रशासन ने साथ में लिया। पाया गया कि दुकान संचालक अधिकतर बिक्री में जीएसटी की चोरी कर रहे हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए जीएसटी अधिकारियों ने कार्रवाई शुरू कर दी है। दैनिक बिक्री के औसत के आधार पर कुल बिक्री चोरी पूरे टर्नओवर पर तय कर वसूल की जाएगी। इसके अलावा विभाग ब्याज और अर्थदंड भी वसूल करेगा। छापेमारी में नगर मजिस्ट्रेट प्रत्यूष सिंह, उप जिलाधिकारी सदर हरी गिरी, संयुक्त मजिस्ट्रेट गौरी प्रभात, उप जिलाधिकारी कुमकुम जोशी, उप जिलाधिकारी अपूर्वा सिंह, मुख्य मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद कुमार, सहायक राज्य कर आयुक्त अविनाश पांडे आदि अधिकारी शामिल रहे

स्कूलों की मिलीभगत की जांच, अभिभावक कर रहे शिकायत
जिलाधिकारी सविन बंसल के मुताबिक बुक डिपो में अभिभावकों के साथ की जा रही मनमानी पर स्कूलों की मिलीभगत की जांच भी की जाएगी। कई अभिभावकों ने शिकायत की है कि उन्हें निर्धारित बुक डिपो से ही स्टेशनरी की खरीद का दबाव बनाया जाता है। साथ ही जहां भी स्कूलों की कापी किताबें बेची जाती हैं, वहां दाम से लेकर अनावश्यक खरीद के लिए भी दबाव बनाया जाता है। बुक डिपो स्कूल हिसाब से पहले से बंडल बनाकर रखते हैं। सुविधा के लिहाज से यह ठीक है, लेकिन उसमें अनावश्यक वस्तुओं को भी पैक किया जाता है। प्रशासन की यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।

ब्राइटलैंड्स जैसे स्कूल से सीख लें शिक्षा कारोबारी
राजधानी दून में तमाम स्कूल कॉपी-किताबों से लेकर यूनिफॉर्म तक के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं। कई स्कूल तो ऐसे हैं, जो अपने परिसर में ही दुकान चलाने लगते हैं। जिसका मकसद अभिभावकों को सहूलियत देना नहीं, बल्कि मनमाने दाम वसूलना होता है। जो ऐसा नहीं करते हैं, वह स्टेशनरी से लेकर यूनिफॉर्म तक की अपनी दुकान बंधवा लेते हैं। हालांकि, इस लूट के बीच ब्राइटलैंड्स जैसे स्कूल भी हैं, जो अभिभावकों पर कोई दबाव नहीं बनाते। अभिभावकों के पूछने पर भी वह साफ कह देते हैं कि आपकी इच्छा है, जहां से मर्जी, वहां से स्टेशनरी और यूनिफॉर्म खरीदें। सुचिता के मामले में इस स्कूल के पुराने प्रबंधन से लेकर नए प्रबंधन तक में व्यवस्था समान है।

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