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प्रचार न प्रसार और सरकार की झोली में डाल दिए 4360 करोड़

न्यूनतम उपभोग और अधिकतम राजस्व की दिशा में बढ़ रहा उत्तराखंड का आबकारी विभाग

Amit Bhatt, Dehradun: शराब का सेवन बेशक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसे बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्व की बात हो तो उत्तराखंड में सरकार की झोली भरने में इसका स्थान दूसरा है। न्यूनतम उपभोग और अधिकतम राजस्व की चुनौती के बीच आबकारी विभाग ने 31 मार्च 2025 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में सरकार की झोली में 4360 करोड़ रुपये डाल दिए। यह आंकड़ा वर्ष 2021-22 के मुकाबले 1100 करोड़ रुपये अधिक है। प्रदेश के कमाऊ पूत कहे जाने वाले विभागों की बात की जाए तो आबकारी विभाग से आगे सिर्फ स्टेट जीएसटी (राज्य कर) विभाग ही है।

राज्य कर विभाग राजस्व बढ़ाने के लिए तरह-तरह से प्रचार-प्रसार कर सकता है। बिल लाओ इनाम पाओ योजना भी इसी का हिस्सा रही। स्टांप एवं रजिस्टेशन, खनन और वन निगम जैसे विभाग/एजेंसी भी अपना राजस्व बढ़ाने के लिए समुचित प्रचार-प्रसार कर सकती हैं। लेकिन, समाज की सेहत को ध्यान में रखते हुए आबकारी विभाग नैतिक रूप से भी ऐसा नहीं कर सकता है। बल्कि उसे तो एक तरफ शराब को हतोत्साहित करना है और दूसरी तरफ सरकार को अधिक से अधिक राजस्व कमाकर भी देना है।

इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए ही आबकारी विभाग ने अपनी नीति में आवश्यक बदलाव किए हैं। राजस्व बढ़ोतरी पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही राज्य में स्थापित होने वाले मदिरा संबंधी उद्योगों में प्रत्यक्ष रोजगार के लिए कम से कम 80 प्रतिशत स्थानीय लोगों को भी प्राथमिकता दी जा रही है। आबकारी आयुक्त एचसी सेमवाल के अनुसार नीति से मूल निवासियों की व्यावसायिक भागीदारी और रोजगार अवसरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अप्रत्यक्ष रूप से भी आपूर्ति श्रृंखला, परिवहन तथा सहायक सेवाओं में उत्तराखण्ड के निवासियों को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंच रहा है।

एचसी सेमवाल, आबकारी आयुक्त (उत्तराखंड)

प्रदेश में प्रचलित उदार नियमावली का परिणाम है कि उत्तराखंड अब उपभोक्ता से उत्पादक और निर्यातक राज्य की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है। विशेष रूप से पावर एल्कोहॉल (ऐथेनॉल) के क्षेत्र में ऊधम सिंह नगर जनपद में 02 नए प्लांट्स की स्थापना हो रही है, जो राज्य के औद्योगिक विकास को एक नई गति देने के साथ-साथ स्थानीय युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित करेगा। इसके अतिरिक्त, डिस्टलरी, बॉटलिंग प्लांट, वाइनरी व ब्रूवरी जैसे विविध क्षेत्रों में निवेश एवं उत्पादन से प्रदेश के अलग-अलग जिलों-हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, चंपावत, बागेश्वर आदि में आर्थिक गतिविधियों का विस्तार हो रहा है।

उत्पादन क्षमताओं के विस्तार का असर निर्यात बढ़ने के रूप में भी दिखाई दे रहा है। राज्य में निर्मित मदिरा की लगभग 12 लाख पेटियाँ अन्य राज्यों के साथ-साथ अमेरिका, इटली, अफ्रीका, घाना जैसे देशों को निर्यात की जा रही है। इससे राज्य को अतिरिक्त विदेशी मुद्रा प्राप्त होने के साथ-साथ ‘मेड इन उत्तराखंड उत्पादों की वैश्विक पहचान भी मजबूत हुई है। सार्वजनिक हित और राज्य के आर्थिक विकास को केद्रित रखते हुए, उत्तराखण्ड आबकारी विभाग न केवल अवैध मदिरा के व्यापार पर प्रहार करने में सफल रहा है, बल्कि पारदर्शी नियमावली व सरल अनुज्ञापन प्रक्रियाओं से उद्योगों को प्रोत्साहन देकर अधिकतम राजस्व, व्यापक रोजगार व स्थायी आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। आने वाले वर्षों में भी यह नीति राज्य के मूल निवासियों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए सतत विकास की दिशा में अग्रसर रहेगी।

राजस्व अधिक और खर्चे कम
आबकारी विभाग जहां प्रदेश सरकार को राजस्व देने में अग्रणी भूमिका में है, वहीं स्वयं पर इसके खर्चे बेहद सीमित हैं। इसकी अहम वजह विभाग का राज्य या दूसरे विभागों से आकार में छोटा होना भी है। यही कारण है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के अंतिम दिन जहां 29 विभागों ने एक ही दिन में 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च कर डाली, आबकारी विभाग इस मामले में निचले पायदान में रहा। इन विभागों ने जमकर इसलिए भी खर्च किया, क्योंकि आबकारी और राज्य कर जैसे विभाग अच्छी खासी कमाई करते हैं और उससे राज्य के विकास के पहिए को गति मिलती है।

प्रदेश में सर्वाधिक राजस्व देने वाले विभाग
नाम, राशि (करोड़ रु. में)
राज्य कर, 9256
आबकारी, 4360
स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन, 2635
खनन, 1035
वन, 574

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