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कैग: 10 हजार करोड़ का अंतिम उपभोग कहां किया, पता नहीं

विधानसभा के पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट में सामने आई बजट खर्च में बड़ी अनदेखी

Round The Watch: विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट में बजट खर्च में बड़ी अनियमितता सामने आई है। वर्ष 2021-22 में विभिन्न कार्यों के लिए जारी की गई 10 हजार 717 करोड़ की धनराशि अंतिम रूप से कहां खर्च की गई, इसमें स्पष्टता का अभाव पाया गया है। कैग ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतनी बड़ी धनराशि के अंतिम उपभोग की अनेदखी करना उचित नहीं है।

बुधवार को जारी की गई कैग की रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न कार्यों के लिए जारी किए गए 10 हजार 717 करोड़ रुपये या तो आहरण वितरण अधिकारियों के खातों में पड़े रहे या कार्यदाई संस्थाओं के खातों में। इन राशि को अंतिम रूप से व्यय के अधीन मान लिया गया। नियमानुसार इन राशि को अंतिम एजेंसी तक जारी कर दिया जाना चाहिए था और उसी के अनुरूप अंतिम उपयोग प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। ऐसा न किए जाने के चलते ऐसी धनराशि के बिलों को प्रमाणित भी नहीं माना जा सकता। पारदर्शी व्यवस्था के लिए भी यह स्थिति उचित नहीं है।

इसके अलावा मार्च 2021 तक दिए गए अनुदान से संबंधित 1390 करोड़ रुपये के खर्च के प्रमाण लेखा परीक्षा के लिए मार्च 2022 तक प्रस्तुत नहीं किए जा सके। ऐसे उपयोगिता प्रमाण पत्रों की संख्या 321 रही।

2500 करोड़ रुपये से अधिक के स्रोत और खर्च का पता नहीं
कैग ने पाया है कि 2500 करोड़ रुपये से अधिक की प्राप्ति और खर्च को ”800” संख्या के अंतर्गत दर्ज किया गया है। इस संख्या में वह धनराशि दर्ज की जाती है, जिसके बारे में स्पष्टता न हो। इसे अन्य व्यय या अन्य प्राप्ति भी कहा जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने 1,343 करोड़ रुपये के व्यय और 1,223 करोड़ रुपये की प्राप्तियों को इस अस्पष्ट मद में दर्ज किया है। कैग ने अपनी टिप्पणी में कहा, पारदर्शी वित्तीय रिपोर्टिंग के लिए यह स्थिति ठीक नहीं है। लिहाजा, इसके चलते आवंटन प्राथमिकताओं के साथ ही व्यय की गुणवत्ता का विश्लेषण प्रभावित हुआ है।

11 प्रतिशत खर्चों का मिलान नहीं
वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए मुख्य नियंत्रण अधिकारियों (सीसीओ) के आय और व्यय के मिलान की सटीकता का भी परीक्षण किया गया। कैग ने पाया कि सीसीओ प्राप्तियों में मामले में 95.19 प्रतिशत का मिलान कर पाए, जबकि व्यय के मामले में यह मिलान 89.02 प्रतिशत ही रहा। साथ ही टिप्पणी की गई है कि महालेखाकार के आंकड़ों के साथ मिलान न किया जाना सरकार की कमजोर आंतरिक नियंत्रण प्रणाली को दर्शाता है। इससे लेखाओं की शुद्धता से संबंधित चिंता भी बढ़ती है।

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