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एलियन प्रजाति के घोर शत्रु हैं हाथी और गैंडे जैसे बड़े जानवर

भारतीय वन्यजीव संस्थान और डेनमार्क की आरहस यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी, 26 हजार से अधिक कैमरा ट्रैप से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण में शाकाहारी जीवों के व्यवहार की मिली नई जानकरी 

Usha Gairola, Dehradun: हाथी, गैंडे, जंगली भैंसे व जंगली गाय (गौर) जैसे बड़े शाकाहारी जानवर एलियन/आक्रामक प्रजाति के घोर शत्रु हैं। यह एलियन या आक्रामक प्रजाति लैंटाना, पार्थेनियम, अल्टरनेथेरा फिलोसेराइड्स जैसी वनस्पतियों की हैं। ये जानवर इन वनस्पतियों को तहस-नहस कर देशी वनस्पतियों को पनपने के लिए अवसर प्रदान कर रहे हैं। बड़े शाकाहारी जानवरों के नैसर्गिक व्यवहार की यह जानकारी भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून और डेनमार्क की आरहस यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आई है। हाल में यह अध्ययन प्रसिद्ध नेचर इकोलाजी एंड एवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

बड़े शाकाहारी जानवरों के व्यवहार के अध्ययन के लिए डेनमार्क की आरहस यूनिवर्सिटी के पोस्टडाकटोरल निनाद अविनाश मुंगी व डब्ल्यूआइआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ वाईवी झाला (अब संस्थान से सेवानिवृत्त) ने 26 हजार से अधिक कैमरा ट्रैप से प्राप्त चित्रों का अध्ययन किया।

वरिष्ठ विज्ञानी डा वाईवी झाला के मुताबिक यह कैमरा ट्रैप देश में बाघों की गणना के लिए लगाए गए हैं। इनमें वर्ष 2005 से लेकर 2018 तक की जानकारी संकलित हैं। बाघों की गणना के दौरान कैमरा ट्रैप में तमाम अन्य जानवरों की मूवमेंट भी कैद होती रहती हैं। इस तरह के मूवमेंट में 1000 किलो से अधिक वजन वाले जानवरों के व्यवहार की पड़ताल की गई।

अध्ययन में पता चला कि बड़े शाकाहारी जीव आक्रामक/विदेशी या एलियन प्रजाति की वनस्पतियों के दुश्मन हैं। ऐसी प्रजातियों को तहस-नहस करने की नैसर्गिक प्रवृत्ति इनमें पाई गई है। यह गुण शाकाहारी वन्यजीवों में पहले से विद्यमान है, लेकिन इसकी पहचान पहली बार की गई है।

वरिष्ठ विज्ञानी डॉ वाईवी झाला।

शाकाहारी जीव देशी वनस्पतियों की राह कर रहे आसान
वरिष्ठ विज्ञानी डॉ वाईवी झाला के मुताबिक अध्ययन के दौरान पता चला कि आक्रामक वनस्पतियों को तहस-नहस किए जाने से देशी वनस्पति प्रजातियों को पनपने में मदद मिल रही है। ऐसे क्षेत्रों में देशी वनस्पतियां पर्याप्त मात्रा में पाई गईं, जहां हाथी, गैंडे, जंगली भैंसे व गौर जैसे वन्यजीव अधिक संख्या में थे। शाकाहारी वन्यजीवों का आहार देशी वनस्पतियां ही हैं। जिसका सीधा मतलब यह है कि अपने भोजन की सुरक्षा के लिए आक्रामक वनस्पतियों को नष्ट करने का नैसर्गिक गुण वन्यजीवों में विद्यमान है।

 

वन्यजीव संरक्षण बढ़ाकर होगा आक्रामक प्रजातियों के सफाया
वरिष्ठ विज्ञानी डा वाईवी झाला ने बताया कि दुनियाभर के वन क्षेत्रों में आक्रामक प्रजाति की वनस्पतियां देशी प्रजाति या चारे वाली वनस्पतियों के लिए खतरा बन रही हैं। आक्रामक प्रजातियां अपने आसपास किसी अन्य वनस्पती को पनपने नहीं देती हैं। बीते 50 वर्षों में ऐसी प्रजातियों के उन्मूलन के लिए दुनियाभर की सरकारों ने 120 बिलियन अमेरिकी डालर खर्च किए हैं। हालांकि, ताजा अध्ययन इस बात पर बल देता है कि जिस वन क्षेत्र में बड़े आकार वाले शाकाहारी जानवर होंगे, वहां आक्रामक वनस्पतियों के विस्तार की आशंका को सीमित किया जा सकता है। लिहाजा, बड़े शाकाहारियों के संरक्षण की दिशा में इसी रणनीति के अनुरूप काम किया जा सकता है।

निनाद अविनाश मुंगी, शोधार्थी, आरहस यूनिवर्सिटी डेनमार्क।

बड़ा होना अच्छा, लेकिन निर्णायक नहीं
अध्ययन में शामिल आरहस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता निनाद अविनाश मुंगी के मुताबिक बड़े शाकाहारी जानवर बेशक आक्रामक वनस्पतियों को सरलता के साथ तहस-नहस कर देते हैं, लेकिन इस व्यवहार में मध्यम आकार वाले शाकाहारी जानवरों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। क्योंकि, वन क्षेत्रों में हाथी व गैंडों का सामान अभाव हो सकता है। ऐसे में वहां मध्यम आकार वाले शाकाहारी जानवरों की बहुसंख्या कारगर साबित हो सकती है। क्योंकि, आक्रामक वनस्पतियों के विरुद्ध सभी में व्यवहार लगभग समान पाया गया है।

इसलिए विश्वसनीय है शोध
शाकाहारी वन्यजीवों के व्यवहार के इस निष्कर्ष पर भरोसा किया जा सकता है। यह कहना है शोधकर्ता पोस्टडाकटोरल निनाद मुंगी व डा वाईवी झाला का। विज्ञानियों का कहना कि है शाकाहारी वन्यजीवों के व्यवहार की यह जानकारी 3.81 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक के वनक्षेत्र के कैमरा ट्रैप की सूचनाओं पर आधारित है। कैमरा ट्रैप की करीब 35 लाख तस्वीरों में हजारों बड़े शाकाहारी जानवरों के व्यवहार की तस्वीरों में समानता भी इस बात का प्रमाण है।

आक्रामक प्रजातियों की लंबाई अधिक होने पर पहुंच दूर
अध्ययन में कुछ ऐसे वन क्षेत्र भी पाए गए, जहां आक्रामक प्रजातियों की लंबाई अधिक हो जाने के साथ वाह घने रूप में भी थी। जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि ऐसे क्षेत्रों में बड़े शाकाहारी जीव जाने से परहेज कर रहे हैं या वहां पहुंच नहीं पा रहे।

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