10 साल की सबसे बड़ी खबर, लोकायुक्त नियुक्ति पर चयन समिति की बैठक
बिना कामकाज के सालाना 02 करोड़ फूंकने वाले कार्यालय को मिलेगा मुखिया, 10 साल बाद प्रदेश में होगी लोकायुक्त की नियुक्ति, मुख्यमंत्री धामी की अध्यक्षता में संपन्न हुई चयन समिति की बैठक
Amit Bhatt, Dehradun: जो कार्यालय पिछले 10 साल से बिना मुखिया के संचालित किया जा रहा है, उसे न सिर्फ अब मुखिया मिल सकेगा, बल्कि बिना कामकाज के सालाना करीब 02 करोड़ रुपये का बजट खपाने की प्रवृत्ति भी दूर होगी। बात हो रही है लोकायुक्त कार्यालय की, जिसमें सितंबर 2013 के बाद से लोकायुक्त की तैनाती नहीं की गई है। अब लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार ने कवायद शुरू कर दी है।
शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर चर्चा की गई। मुख्यमंत्री आवास में हुई इस बैठक में तय किया गया कि लोकायुक्त पद पर विधिवेत्ता की नियुक्ति की जाएगी। साथ ही लोकायुक्त के चयन की प्रक्रिया को लेकर भी बैठक में विचार विमर्श किया गया। चयन समिति की बैठक में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य व नैनीताल हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनोज तिवारी उपस्थित रहे।
हाईकोर्ट ने दिया है सरकार को तीन माह का समय
लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायाधीश राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने अगस्त माह में सरकार को तीन माह के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति के आदेश दिए थे।
सितंबर 2013 के बाद से लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की
उत्तराखंड का लोकायुक्त कार्यालय संभवतः देश का ऐसा पहला कार्यालय होगा, जो बिना कामकाज के चल रहा है। न सिर्फ कार्यालय संचालित किया जा रहा है, बल्कि इस पर सालाना करीब दो करोड़ रुपये वेतन आदि में खर्च भी किए जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक बिना काम खर्च का यह सिलसिला भी एक-दो साल से नहीं, बल्कि बीते 10 वर्ष (2013) से चल रहा है।
आरटीआई में सामने आई जानकारी
बिना काम खर्च की यह हकीकत सामाजिक कार्यकर्त्ता विनोद जोशी की ओर से दायर किए गए आरटीआइ आवेदन के उत्तर में सामने आई। आरटीआइ से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद 24 अक्टूबर 2002 को सैयद रजा अब्बास को लोकायुक्त बनाया गया था। वह वर्ष 2008 तक इस पद पर रहे और इसके बाद लोकायुक्त की जिम्मेदारी एमएम घिल्डियाल ने संभाली। वह सितंबर 2013 तक पद पर रहे। तब से यह कार्यालय लोकायुक्त विहीन चल रहा है।
सितंबर 2013 के बाद से कामकाम नहीं
आपको बता दें लोकायुक्त की मुख्य जिम्मेदारी भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों को प्राप्त कर उनका निस्तारण करना है, लेकिन वर्ष सितंबर 2013 के बाद से यह काम ठप पड़ा है। वर्ष 2013 तक भो जो 15222 शिकायतें दर्ज की गई थीं, उनमें से 6927 शिकायतों का ही निपटारा किया जा सका था। उत्तराखंड का लोकायुक्त कार्यालय में स्टाफ के वेतन से लेकर अन्य सभी प्रमुख मदों से अच्छा खासा बजट खपाया जा रहा है।
डेढ़ करोड़ रुपये सिर्फ वेतन पर किए जा रहे खर्च
बिना लोकायुक्त के चल रहे लोकायुक्त कार्यालय में कार्मिकों के वेतन पर ही सलाना करीब डेढ़ करोड़ रुपये का खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा वाहनों के संचालन/अनुरक्षण, मजदूरी, फर्नीचर, कंप्यूटर आदि मदों में भी बजट का प्रविधान किया गया है।