बिग ब्रेकिंग: निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने वाली शपथ पत्र की व्यवस्था पर शिक्षा विभाग ने ही डाला पर्दा
पहली बार सूचना आयोग में खुली अफसरों की कारगुजारी, ऐसी जांच समिति गठित कर डाली, जिसने आज तक जांच नहीं की

Amit Bhatt, Dehradun: प्रत्येक नए शिक्षा सत्र में मनमानी फीस बढ़ाने वाले स्कूलों का एक काला सच पहली बार सामने आया है। सच यह है कि निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग को इस आशय का शपथ पत्र पहले ही दे रखा है कि वह 03 साल के अंतराल में अधिकतम 10 प्रतिशत ही फीस/शुल्क बढ़ाएंगे। यानी कि सालाना औसतन 3.33 प्रतिशत। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि तमाम नामी स्कूल प्रत्येक वर्ष 10-12 प्रतिशत फीस बड़े आराम से बढ़ा देते हैं। दरअसल, इस काले सच के पीछे खुद शिक्षा विभाग की कारगुजारी का हाथ है। क्योंकि, यह शपथ पत्र निजी स्कूलों ने सीबीएसई/आईसीएसई की संबद्धता के लिए सरकार की एनओसी प्राप्त करने के लिए खुद शिक्षा विभाग में जमा कराया है। यह बात और है कि शिक्षा विभाग के अफसरों ने इसका संज्ञान नहीं लिया या जानबूझकर ऐसा करना जरूरी नहीं समझा। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि एक अपील की सुनवाई के दौरान यह बात उत्तराखंड सूचना आयोग में उजागर हुई है।
हर बार नए शिक्षा सत्र में निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि की शिकायतें सतह पर आ जाती हैं। अभिभावक संगठनों से लेकर विभिन्न समाजिक, राजनीतिक और छात्र संगठन भी खुलकर विरोध में उतर पड़ते हैं। अफसर भी नोटिस और चेतावनी का नाटक शुरू कर देते हैं और फिर जैसे-जैसे शिक्षा सत्र आगे बढ़ता है, विरोध के स्वर उपेक्षा में दम तोड़ने लगते हैं। इस शपथ पत्र की व्यवस्था की जानकारी भी सामने नहीं आती, यदि सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई सूचना का एक मामला सूचना आयोग नहीं पहुंचता।
दून के प्रतिष्ठित हिल्टन स्कूल से जुड़ी सूचना जब देहरादून के जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) कार्यालय से मांगी गई तो अधिकारियों को जैसे सांप सूंघ गया। विभागीय अपीलीय अधिकारी स्तर से भी आरटीआइ का समाधान नहीं किया जा सका। जिसके क्रम में आवेदनकर्ता देहरादून निवासी लव चौधरी ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। सूचना आयोग के हाल के आदेश से स्पष्ट हुआ है कि करीब 02 साल पहले 31 अक्टूबर 2023 को तत्कालीन मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार ने मनमानी की शिकायतों पर निजी स्कूलों के निरीक्षण के लिए एक जांच समिति गठित की थी।
हालांकि, दिलचस्प यह कि समिति ने आज तक कोई जांच की ही नहीं। साफ है कि प्रत्येक शिक्षा सत्र में अभिभावकों के विरोध को शांत करने के लिए जांच की खानापूर्ति की गई थी। इसके अलावा यह भी समाने आया कि उत्तर प्रदेश के समय से प्रचलित शासनादेश में यह व्यवस्था की गई है कि निजी स्कूल सीबीएसई/आइसीएसई की संबद्धता के लिए राज्य सरकार से एनओसी प्राप्त करने को शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा। जिसमें यह लिखा होगा कि वह 03 वर्ष के अंतराल में 10 प्रतिशत से अधिक की शुल्क वृद्धि नहीं करेंगे।
सूचना आयोग में यह बात भी उजागर हुई कि शिक्षा विभाग इस शपथ पत्र का संज्ञान नहीं लेता है। सूचना आयोग ने इसे शिक्षा विभाग की लचर कार्यशैली बताते हुए कहा कि इससे विभाग की छवि भी धूमिल होती है। विभाग की अनदेखी से निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल करते हैं और अभिभावकों, मेधावी छात्रों के हितों पर कुठाराघात होता है। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए सूचना आयोग ने आदेश की प्रति इस आशय के साथ महानिदेशक शिक्षा (माध्यमिक) को भेजी है कि मुख्य शिक्षा अधिकारी की ओर से गठित समिति से यथाशीघ्र जांच कराई जाए। जिन भी स्कूलों में मनमानी पाई जाएगी, उन पर विधिक कार्रवाई अमल में लाई जाए। कृत कार्रवाई से आयोग को भी अवगत कराया जाए।
एनओसी की जानकारी विभाग की जगह स्कूल से ही मांग ली
शपथ पत्र के क्रम में स्कूल को दी गई एनओसी की प्रति भी आरटीआइ के आवेदन में मांगी गई थी। आयोग में यह बात साफ हुई कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने यह जानकारी विभाग स्तर से देने की जगह उल्टे हिल्टन स्कूल से ही मांग ली। इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए आयोग ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी भली भांति वाकिफ थे कि निजी स्कूल में लोक सूचना अधिकारी की व्यवस्था नहीं रहती है। ऐसे में वाजिब सूचनाओं की राह और मुश्किल हो जाती है। यदि अधिकारी की मंशा ठीक थी तो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्राविधानों से इतर स्कूल से सूचना एकत्रित की जा सकती थी।

डीएम बंसल ने तोड़ी खानापूर्ति की प्रथा, ले रहे कड़ा संज्ञान
निजी स्कूलों की मनमानी पर शिक्षा विभाग के लचर रवैये से इतर जिलाधिकारी सविन बंसल जिला प्रशासन की शक्तियों और कर्तव्यों का जमकर पाठ पढ़ा रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ नए शिक्षा सत्र में कॉपी-किताबों के नाम पर किए जा रहे काले कारोबार पर नकेल कसी, बल्कि मनमानी फीस वसूल रहे स्कूलों की अक्ल भी ठिकाने लगाई। दून में 04 बुक डिपो पर प्रशासन ने ताला जड़ा और अधिक फीस वसूल रहे स्कूलों को उल्टे पांव दौड़ने पर विवश कर दिया। अब या तो स्कूल मानकों के अनुरूप फीस बढ़ाने लगे हैं या बढ़ाई गई फीस पर रोलबैक कर रहे हैं।