Uttarakhandराजनीति

धर्म नगरी में गर्माया प्रत्याशी के 786 नंबर का उल्लेख, घोषणा पत्र में दर्ज नंबर पर खड़ा हुआ विवाद

चुनाव में धर्म और जाति के नाम पर मतदाताओं को प्रलोभन देना है नियमों का उल्लंघन, अध्यक्ष पद के निर्दलीय प्रत्याशी से जुड़ा है मामला, क्या निर्वाचन आयोग लेगा संज्ञान

Rajkumar Dhiman, Dehradun: नगर पालिका बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) में चुनावी घोषणा पत्र में धर्म विशेष के 786 अंक के उल्लेख से मामला गर्मा गया है। इसको लेकर नया विवाद खड़ा होता दिख रहा है। माना जा रहा है कि धर्म विशेष के मतदाताओं को अपनी तरफ करने के लिए का उल्लेख प्रत्याशी ने जानबूझकर घोषणा पत्र में किया है। भाजपा ने इस मुद्दे को तुरंत लपक लिया है और आकलन के लिए गेंद जनता के पाले में फेंक दी है। मतदाताओं से अपील की गई है कि वह धर्म और जाति के मुद्दे को दरकिनार कर सिर्फ विकास और काशी के बेहतर भविष्य को ध्यान में रखते हुए वोट डालें।

नगर पालिका परिषद बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) को धार्मिक नगरी घोषित करने को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने मुद्दा बना रखा है। लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी ने बाबा विश्वनाथ की धरती में वर्ग विशेष के शुभ अंक को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर नई बहस छेड़ दी है। खासकर निर्दलीय ने वर्ग विशेष के शुभ अंक को बड़ी सफाई से वाल्मीकि समुदाय के साथ जोड़ दिया है। निर्दलीय प्रत्याशी के घोषणा पत्र को पढ़ने के दौरान वाल्मीकि समाज को वर्ग विशेष के अंक के साथ शामिल कर दिया है। इसके पीछे उत्तरकाशी में मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए वाल्मीकि समाज से आने वाले सफाई कर्मियों (पर्यावरण मित्रों) को 786 रुपये का दैनिक मानदेय देने की घोषणा इस घोषणा पत्र में की गई है।

गौरतलब है कि 786 नंबर पूरी तरह से इस्लामिक धार्मिक संकेत है। अक्सर मुस्लिमों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर यह नंबर अंकित होता है। ऐसे में हिंदू धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों को 786 रुपये का मानदेय देने की घोषणा क्या इनके इस्लामीकरण की साजिश तो नहीं है? यह सवाल हमारा नहीं है, बल्कि इस पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोगों का कहना है कि मानदेय 750 रुपये भी हो सकता था या 800 रुपये भी। जिससे महीने के हिसाब से एक निश्चित रकम बनती है, लेकिन 786 रुपये का आकलन किसी गणित से अधिक एक संकेत अधिक नजर आ रहा है।

क्या किसी मुस्लिम व्यक्ति ने निर्दलीय प्रत्याशी का घोषणा पत्र बनाया है? मस्जिद विवाद के बाद निर्दलीय प्रत्याशी की नजर वैसे भी मुस्लिम वोटों पर देखी जा रही है। यह जानबूझकर हिंदू धर्म के वाल्मीकि समाज का अपमान हो सकता है या इसे इस्लामीकरण की साजिश मानी जाए ? राज्य निर्वाचन आयोग को इस तरह के घोषणा पत्रों और उसके पीछे छिपे निहितार्थ का संज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि, चुनाव में सुचिता ही सबसे बड़ी आचार संहिता मानी जाती है।

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